Saturday 31 July 2010

गधे को भी इन्सान बना देते हो


संता पे बिजली का तार गिर गया :
संता तड़प तड़प के मरने ही वाला था,..
की उसे याद आया की... बिजली 2 दिन से बंद है.


सोनू - यार.. ये औरतें शराब से नफरत क्यों करती हे,
मोनू - क्यों की, शराब पिने के बाद.
चूहे जैसा पति भी शेर बन जाता हे. 


संता क्लास में 1 गधा ले कर आया
शिक्षक :- इश्को क्यों ले आये हो?
संता : सर आप ने ही तो कहा था की आप
गधे को भी इन्सान बना देते हो.. 


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Wednesday 28 July 2010

माँ तुझे सलाम !

एक शहीद की माँ का पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री के नाम .. .. .. - कुछ औरों की , कुछ अपनी ...




ह पत्र शहीद कॉमरेड चंद्रशेखर
की माँ द्वारा लिखा गया था , शहीद की मृत्यु पर सरकार द्वारा दिए गए एक लाख के बैंक-ड्राफ्ट को लौटाते हुए | कॉ. चंद्रशेखर नवें दशक की भारतीय छात्र-राजनीति के जुझारू नायक के तौर पर जाने जाते हैं | इनकी हत्या सीवान , बिहार के तत्कालीन सांसद शहाबुद्दीन द्वारा की गयी | हत्यारे को आज भी सजा नहीं दी गयी है | यह भारतीय लोकतंत्र पर एक धब्बा है | जे.एन.यू. छात्र-संघ  के अध्यक्ष रह चुके कॉ. चंद्रशेखर जे.एन.यू. की छात्र-राजनीति के एक युग के तौर पर जाने जाते हैं | शहीद चंद्रशेखर पर हम गर्व करते हैं ! अब प्रस्तुत है शहीद की माँ का पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री के नाम --- 

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'' प्रधानमन्त्री महोदय , आपका पत्र और बैंक ड्राफ्ट मिला |  
आप शायद जानते हों कि चंद्रशेखर मेरी इकलौती संतान था | उसके सैनिक पिता जब शहीद हुए थे , वह बच्चा ही था | आप जानिये , उस समय मेरे पास मात्र १५० रूपये थे | तब भी मैंने किसी से कुछ नहीं माँगा था | अपनी मेहनत और इमानदारी की कमाही से मैंने उसे राजकुमारों की तरह पाला था | पाल पोस कर बड़ा किया था और बढियां से बढियां स्कूल में उसे पढ़ाया था | मेहनत और इमानदारी की वह कमाही अभी भी मेरे पास है | कहिये , कितने का चेक काट दूँ |
     लेकिन महोदय , आपको मेहनत और इमानदारी से क्या लेना देना ! आपको मेरे बेटे की 'दुखद मृत्यु' के बारे में जानकार गहरा दुःख हुआ है , आपका यह कहना तो हद है महोदय ! मेरे बेटे की मृत्यु नहीं हुई है | उसे आप ही के दल के गुंडे , माफिया डॊन सांसद शहाबुद्दीन ने - जो दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद का दुलरुआ भी है - खूब सोच-समझकर व योजना बनाकर मार डाला है | लगातार खुली धमकी देने के बाद , शहर के भीड़-भाड़ भरे चौराहे पर सभा करते हुए , गोलियों से छलनी कर देने के पीछे कोई ऊँची साजिश है | प्रधानमंत्री महोदय ! मेरा बेटा शहीद हुआ है वह दुर्घटना में नहीं मरा है |
    मेरा बेटा कहा करता था कि मेरी माँ बहादुर है | वह किसी से भी डरती नहीं , वह किसी भी लोभ-लालच में नहीं पड़ती | वह कहता था - मैं एक बहादुर माँ का बहादुर बेटा हूँ | शहाबुद्दीन ने लगातार मुझे कहलवाया था कि अपने बेटे को मना कर लो नहीं तो उठवा लूंगा | मैंने जब यह बात उसे बतलाई तब उसने यही कहा था | ३१ मार्च की शाम को जब मैं भागी भागी अस्पताल पहुँची वह इस दुनिया से जा चुका था | मैंने खूब गौर से उसका चेहरा देखा , उसपर कोई शिकन नहीं थी | दर या भय का कोई चिह्न नहीं था | एकदम से शांत चेहरा था उसका , प्रधानमंत्री महोदय लगता था वह अभी उठेगा और चल देगा | जबकि , प्रधानमंत्री महोदय ! उसके सर और सीने में एक-दो नहीं सात-सात गोलियां मारी गयी थीं | बहादुरी में उसने मुझे भी पीछे छोड़ दिया |
    मैंने कहा न कि वह मर कर भी अमर है | उस दिन से ही हज़ारों छात्र-नौजवान , जो उसके संगी-साथी हैं , जो हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी , मुझसे मिलने आ रहे हैं | उन सबमें मुझे वह दिखाई देता है | हर तरफ , धरती और आकाश तक में , मुझे हज़ारों-हज़ार चंद्रशेखर दिखाई दे रहे हैं | वह मरा नहीं है प्रधानमंत्री महोदय !
    इसीलिये इस एवज में कोई भी राशि लेना मेरे लिए अपमानजनक है | आपके कारिंदे पहले भी आकर लौट चुके हैं | मैंने उनसे भी यही सब कहा था | मैंने उनसे कहा था कि तुम्हारे पास चारा घोटाला का , भूमि घोटाला का , अलकतरा घोटाला का जो पैसा है , उसे अपने पास ही रखो | यह उस बेटे की कीमत नहीं है जो मेरे लिए सोना था , रतन था , सोने व रतन से भी बढ़कर था | आज मुझे यह जानकार और भी दुःख हुआ कि इसकी सिफारिश आपके गृहमंत्री इन्द्रजीत गुप्त ने की थी | वे उस पार्टी के महासचिव रह चुके हैं जहां से मेरे बेटे ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी | मुझ अपढ़-गंवार माँ के सामने आज यह बात और भी साफ़ हो गयी कि मेरे बेटे ने बहुत जल्दी ही उनकी पार्टी क्यों छोड़ दी थी | इस पत्र के माध्यम से मैं आपके साथ-साथ उनपर भी लानतें भेज रही हूँ जिन्होंने मेरी भावना के साथ घिनौना मजाक किया है और मेरे बेटे की जान की ऐसी कीमत लगवाई है | 
    एक माँ के लिए - जिसका इतना बड़ा और इकलौता बेटा मार दिया गया हो और , जो यह भी जानती हो कि उसका कातिल कौन है - एकमात्र काम जो हो सकता है , वह यह है कि कातिल को सजा मिले | मेरा मन तभी शांत होगा महोदय ! उसके पहले कभी नहीं , किसी भी कीमत पर नहीं | मेरी एक ही जरूरत है , मेरी एक ही मांग है - अपने दुलारे शहाबुद्दीन को 'किले' से बाहर करो , या तो उसे फांसी दो , या फिर लोगों को यह हक़ दो कि वे उसे गोली से उड़ा दें |
    मुझे पक्का विश्वास है प्रधानमंत्री महोदय ! आप मेरी मांग पूरी नहीं करेंगे | भरसक यही कोशिश करेंगे कि ऐसा न होने पाए | मुझे अच्छी तरह मालूम है कि आप किसके तरफदार हैं | मृतक के परिवार को तत्काल राहत पहुचाने हेतु स्वीकृत एक लाख रूपये का यह बैंक-ड्राफ्ट आपको ही मुबारक ! कोई भी माँ अपने बेटे के कातिलों से सुलह नहीं कर सकती | '' 
               पटना                                                                                    --- कौशल्या देवी 
       १८ अप्रैल १९९७                                                                        ( शहीद चंद्रशेखर की माँ )
                                                                                                           बिन्दुसार , सीवान 
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शहीद चंद्रशेखर की माँ का कहना सही था , आज तक सरकार हत्यारे शहाबुद्दीन को सुरक्षित रखी हुई है ! 
पर , कॉ. चंदू आज भी हमारे प्रेरणास्रोत बने हुए हैं !
कॉ. चंदू को लाल सलाम !! 


--- आभार , 
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी 
१७-०७-२०१०

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Tuesday 27 July 2010

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Sunday 25 July 2010

काँच की बरनी और दो कप चाय

*– **काँच** **की** **बरनी** **और** **दो** **कप** **चाय** **– *

एक बोध कथा

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ
तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे
भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद
आती है ।



दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे
आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें
टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद
समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ?
हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु
किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी ,
समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों
ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस
बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब
छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह
बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा ..
सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय
भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ..

.

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....



टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे ,
मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,

छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और

रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..



अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की
गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें
नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ...



यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे
तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के
लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे
में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर
निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो ,
वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है ..





छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं
बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच
ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...

इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन
अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
( अपने खास मित्रों और निकट के व्यक्तियों को यह विचार तत्काल बाँट दो .. मैंने
अभी - अभी यही किया है)





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Wednesday 21 July 2010

वरना हम जाग जायेगे


मोलू : बताओ, भारत में सबसे ज्यादा बारिश कहा गिरती हैं
बड़ी देर सोचने के बाद

गोलू ने जवाब दिया:

ज़मीन पर.



"अच्छी बीवी" और "भूत" एक जैसे होते है..........!!
क्यूंकि इनकी बातें तो सब करते
है..!
पर?
आज तक देखा किसी ने नहीं


1 सरकारी ऑफिस के बोर्ड पर लिख था
"कृपया शोर ना करे"
संता ने उसके नीचे लिख दिया!


वरना हम जाग जायेगे




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Saturday 3 July 2010

हाय मर्द बेचारा जाये तो जाये कहाँ !


मर्द  अगर  औरत  पर  हाथ  उठाए  तो  ज़ालिम , औरत  से  पिट  जाये  तो  बुजदिल
औरत  को  किसी  के  साथ  देख कर लड़े तो  इर्शालू, अगर  कुछ  न  कहे  तो  बेघैरत
अगर  घर  से  बहार  रहे  तो  आवारा , घर  में  रहे  तो  नाकारा
बचों  को  डांटे  तो  ज़ालिम , न  डांटे  तो  लापरवा
औरत  को  कम  से  रोके  तो  दकियानुस , न  रोके  तो  औरत   की  कमाई  खाने  वाला
हाय  मर्द  बेचारा  जाये  तो  जाये  कहाँ !






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