दीप जलाओ, ख़ुशी मनाओ
दीप जलाओ, ख़ुशी मनाओ
आई दिवाली आई!
रात अमावस की तो क्या,
घर-घर हुआ उजाला
सजे कंगूरे दीपशिखा से,
ज्यों पहने हो माला
मन मुटाव मत रखना भाई,
आई दिवाली आई!
झिल्मिल्झिल्मिल बिजली की
रंग बिरंगी लड़ियाँ
नन्हे मुन्ने हाथों में वह
दिल फरेब फुलझरियां
दिवाली है पर्व मिलन का,
भारत मिलिहिं निज भाई
चौराहे, मंदिर, गलियों में
लगे हुए हैं मेले
नज़र पड़े जिस ओर दिखे,
भरे ख़ुशी से चेहरे
चौदह बरस बाद लौटे हैं,
सियलखन रघुराई
दिवाली के दिन हैं जैसे,
घर में हो कोई शादी
अन्दर बहार होए सफेदी,
खुश अम्मा, खुश दादी
गोवर्धन को धरे छंगुरिया
इन्ही दिनन गोसाईं
No comments:
Post a Comment